सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी | Biography of Subhash Chandra Bose in Hindi | Subhash Chandra Bose

सुभाष चंद्र बोस की कहानी 

Subhash Chandra Bose ka Jivan Parichay


नमस्कार दोस्तों ! आज की इस पोस्ट में हम आपको नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जीवनी के बारे में बताने वाले है | वैसे तो सुभाषचंद्र बोस को हम सब जानते है पर उनके जीवन की ऐसी भी कुछ बाते है जिन्हे हम लोग नहीं जानते | आज हम आपको वो सारी चीज़े बताएँगे | तो चलिए शुरू करते है |

Biography of Subhash Chandra Bose in Hindi



 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जीवन परिचय 

(Netaji Subhas Chandra Bose biography in hindi)-

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी का शुरुआती जीवन 

(Netaji Subhas Chandra Bose Initial Life)–

नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी का जन्म कटक, उड़ीसा के एक बंगाली परिवार में हुआ था | नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के 7 भाई और 6 बहनें थी | अपनी माता पिता की वे 9 वीं संतान थे | नेता जी अपने बड़े भाई शरदचन्द्र के बहुत निकट थे | उनके पिता जानकीनाथ जी कटक, उड़ीसा के एक महशूर और सफल वकील थे, जिन्हें राय बहादुर के नाम से भी जाना जाता था | नेता सुभाषचंद्र बोस जी को बचपन से ही पढाई करने का बहुत शोक था | वे बहुत मेहनती विद्यार्थी और अपने शिक्षक के प्रिय थे | लेकिन नेता सुभाषचंद्र बोस जी को खेल कूद के काम में कभी रूचि नहीं थी | नेता सुभाषचंद्र बोस जी ने स्कूल की पढाई कटक, उड़ीसा से ही पूरी की थी | इसके बाद अपनी आगे की पढाई के लिए वे कलकत्ता, पश्चिम बंगाल चले गए | वहां सुभाषचंद्र बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज से फिलोसोफी में BA की पढाई की | जिस कॉलेज में नेताजी सुभाषचंद्र बोस पढ़ते थे उसी कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर के द्वारा भारतियों को सताए जाने पर नेता जी बहुत विरोध करते थे | उस समय जातिवाद का महत्वपूर्ण मुद्दा बहुत बार उठाया गया था | ये पहली बार था जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू हुई थी |

 

नेता जी सिविल सर्विस की नौकरी करना चाहते थे, अंग्रेजों के शासन के चलते उस समय भारतीयों के लिए सिविल सर्विस की नौकरी करना बहुत मुश्किल था, तब उनके पिता जानकीनाथ बोस ने इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए नेताजी को इंग्लैंड भेज दिया. इस परीक्षा में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने चौथा स्थान अर्जित किया, जिसमें इंग्लिश विषय में उन्हें सबसे ज्यादा अंक मिले थे | नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु और आदर्श मानते थे | वे स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गई बातों का पूरी निष्ठा के साथ अनुसरण करते थे | नेता जी के मन में देश के प्रति अत्यधिक प्रेम था वे उसकी आजादी के लिए हमेशा चिंतित रहते थे, जिसके कारण 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की नौकरी भी ठुकरा दी जिसकी वो तैयारी कर रहे थे और वापस भारत लौट आये |

 

नेताजी  सुभाषचंद्र बोस का राजनैतिक जीवन 

(Subhas Chandra Bose Political Life)–

 

सिविल सर्विसेज की नौकरी छोड़कर वापस भारत लौटते ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वतंत्रता की लड़ाई या क्रांति में कूद गए | नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया | शुरुवात में नेताजी सुभाषचंद्र बोस कलकत्ता में कांग्रेस पार्टी के नेता रहे थे | चितरंजन दास जी के नेतृत्व में नेताजी सुभाषचंद्र बोस काम करते थे | नेताजी सुभाषचंद्र बोस चितरंजन दास जी को अपना राजनीती गुरु के रूप में मानते थे | 1922 में चितरंजन दास जी ने मोतीलाल नेहरु के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर अपनी एक अलग पार्टी जिसका नाम था स्वराज पार्टी बना ली थी | जब चितरंजन दास जी अपनी स्वराज पार्टी के साथ मिल रणनीति बना रहे थे तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस बीच कलकत्ता, पश्चिम बंगाल के नोजवान, छात्र-छात्रा व मजदूर लोगों के बीच अपनी एक विशेष पहचान बना ली थी | नेताजी सुभाषचंद्र बोस जल्द से जल्द हमारे पराधीन भारत को स्वाधीन भारत के रूप में देखने का अरमान रखते थे |

 

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अब लोग नेताजी सुभाषचंद्र बोस को उनके नाम से जानने लगे थे | उनके काम की चर्चा चारो दिशाओ में हो रही थी | नेताजी सुभाषचंद्र बोस एक नयी नौजवान सोच लेकर आये थे, जिससे लोग सुभाषचंद्र बोस को यूथ लीडर के रूप में भी जानने लगे थे | 1928 में गुवाहाटी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की एक बैठक के दौरान नए व पुराने मेम्बेर्स के बीच सुझावों को लेकर मतभेद होने लगा | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नए युवा नेता किसी भी तरह के नियम पर नहीं चलना चाहते थे, वे स्वयं अपने हिसाब से चलना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस पार्टी के पुराने नेता ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये नियम के साथ आगे बढ़ना चाहते थे | सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गाँधी के विचार बिल्कुल भिन्न थे | नेताजी सुभाषचंद्र बोस महात्मा गाँधी  की अहिंसावादी विचारधारा से बिलकुल भी सहमत नहीं थे, उनकी सोच नौजवान जैसी थी, जो केवल हिंसा में ही विश्वास रखते थे | दोनों की विचारधारा बिलकुल भिन्न थी लेकिन दोनों का लक्ष्य एक ही था | दोनों ही हमारे भारत देश को जल्द से जल्द आजाद करवाना चाहते थे | 1939 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष के पद के लिए खड़े हुए थे, इनके खिलाफ गांधीजी ने भी पट्टाभि सिताराम्या जी को खड़ा कर दिया था, जिसे नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने हरा दिया था | महात्मा गांधी को ये हार अपनी हार लगी थी जिससे वे अत्यंत दुखी हुए थे, नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ये बात जान कर अपने पद से तुरंत इस्तीफा दे दिया था | नेताजी सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गाँधी के विचारों का मेल ना होने के कारण नेताजी सुभाषचंद्र बोस लोगों की नजर में महात्मा गाँधी के विरोधी होते जा रहे थे, जिसके बाद सुभाषचंद्र बोस स्वयं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी |

 

आपके लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक


इंडियन नेशनल आर्मी 

(Indian National Army) –

 

1939 में द्वितीय विश्व युध्य चल रहा था, तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपना रुख उस तरफ किया | सुभाषचंद्र बोस पूरी दुनिया से मदद लेना चाहते थे, ताकि अंग्रेजो को उपर से दबाब पड़े और वे हमारा भारत देश छोडकर चले जाएँ | इस सोच का सुभाषचंद्र बोस को बहुत अच्छा प्रभाव देखने को मिला | जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को जेल में डाल दिया | जेल में लगभग 2 हफ्तों तक सुभाषचंद्र बोस ने ना ही तो खाना खाया और ना ही पानी पिया |

 उनकी बिगड़ती हालत को देखकर भारत देश में नौजवान उग्र होने लगे और ब्रिटिश सरकार से उनकी रिहाई की मांग करने लगे | तब सरकार ने सुभाषचंद्र बोस को कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में नजरबन्द कर रखा था | इस बीच 1941 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपने भतीजे शिशिर की साहयता से वहां से भाग निकले | सबसे पहले सुभाषचंद्र बोस बिहार के गोमाह में गए, वहां से नेताजी पाकिस्तान के पेशावर जा पहुंचे | इसके बाद वे सोवियत संघ से होते हुए, जर्मनी पहुँच गए, जहाँ सुभाषचंद्र बोस वहां के शासक एडोल्फ हिटलर से मिले थे |

 

राजनीती में आने से पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस दुनिया के बहुत से हिस्सों में घूम चुके थे | देश दुनिया की सुभाषचंद्र बोस को अच्छी समझ थी | नेताजी को  पता था अडोल्फ हिटलर और पूरा जर्मनी देश का दुश्मन इंग्लैंड देश था | ब्रिटिशों से बदला लेने के लिए सुभाषचंद्र बोस को ये कूटनीति सही लगी और नेताजी ने दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाना उचित समझा | इसी दौरान सुभाषचंद्र बोस ने ऑस्ट्रेलिया देश की एमिली से शादी कर ली थी, जिसके साथ में सुभाषचंद्र बोस बर्लिन में रहते थे, उनकी एक बेटी भी हुई अनीता बोस |

 

1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस जर्मनी छोड़ साउथ-ईस्ट एशिया यानि जापान जा पहुंचे | यहाँ सुभाषचंद्र बोस मोहन सिंह से मिले, जो उस समय आजाद हिन्द फ़ौज के मुख्य नेता थे | नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने मोहन सिंह व रास बिहारी बोस के साथ मिल कर आजाद हिन्द फ़ौजका फिर से पुनर्गठन किया | इसके साथ ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द सरकारनामक एक पार्टी भी बनाई थी | 1944 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपनी आजाद हिन्द फ़ौज के सामने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा का नारा लगाया |  जो पुरे भारत देश में एक नई क्रांति लेकर आया |

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का इंग्लैंड जाना –

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस इंग्लैंड चले गए जहाँ वे ब्रिटिश लेबर पार्टी के अध्यक्ष व राजनीती मुखिया व्यक्तियों से मिले | जहा उन्होंने भारत देश की आजादी और उसके भविष्य के बारे में चर्चा की | ब्रिटिशों को उन्होंने बहुत हद तक भारत देश छोड़ने के लिए मना भी लिया था |

 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की म्रत्यु 

(Subhas Chandra Bose Death)–

 

1945 में जापान जाते समय नेताजी सुभाषचंद्र बोस का विमान ताईवान में क्रेश हो गया था, लेकिन उनकी बॉडी कही नहीं मिली थी | कुछ दिनों बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था | भारत सरकार ने इस दुर्घटना पर बहुत सारे जांच कमिटी भी बैठाई थी, लेकिन इस बात की पुष्टि आज भी नहीं हुई है की नेताजी की बॉडी क्यों नहीं मिली | मई 1956 में शाह नवाज कमिटी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत की अनसुलझी गुतथी को सुलझाने जापान भी गई, लेकिन  ताईवान से कोई खास राजनीती रिश्ता ना होने से उनकी सरकार ने हमारी मदद नहीं की | 2006 में मुखर्जी कमीशन ने संसद में बोला था, कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, और उनकी अस्थियाँ जो रेंकोजी मंदिर में रखी हुई है, वो उनकी है ही नहीं |’ लेकिन मुखर्जी कमिशन की इस बात को भारत सरकार ने ख़ारिज कर दिया था | आज भी इस विषय पर जांच व विवाद चल रहा है |

 

सुभाष चन्द्र बोस जयंती 

(Subhash Chandra Bose Jayanti 2021):-

 

23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को हर वर्ष सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता है | इस बार 2021 में 23 जनवरी को उनका 123 वा जन्मदिन मनाया गया था |

 

 

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