राणा सांगा का इतिहास | History of Rana Sanga in Hindi | Rana Sanga ka Itihaas

राणा सांगा का इतिहास


Rana Sanga:- Itihaas, Jnam, Putra, Yudh, Shashan Kaal, Smarak & More




साल 1500 ईस्वी दिल्ली की सत्ता पर सल्तनत ए हिंद का परचम लहरा रहा था | जिसका सुल्तान था इब्राहिम लोधी और इधर गुजरात में बादशाह बहादुर शाह की अपनी सल्तनत कायम हो चुकी थी | इन्हीं राज्यों से गुजरते हए बीच में पढ़ता था मेवाड़। मेवाड़ हमेशा से दिल्ली की आंख में चुभता था क्योंकि दिल्ली के सुल्तान मेवाड़ के महा योद्धा विषम घाटी पंचानन राणा हमीर सिंह के शौर्य की आग में कई बार तप चुके थे | खैर इस समय मेवाड़ में राणा रायमल का राज हआ करता था | जिन के 3 पुत्र थे कुंवर पृथ्वीराज, कुंवर जयमल और सबसे छोटा पुत्र था कुंवर संग्राम सिंह । यह तीनो भाई एक रोज अपने गुरु के आश्रम जाते हैं। गुरु बालक संग्राम सिंह के हाथ को देखकर बताता है कि "तेरी तलवार से सल्तनते कापेगी जहां तेरा ध्वज लहराएगा वहां आसपास भी कोई शत्रु नहीं भटकेगा | नगर नगर में तेरी धाक कायम होगी | बहुत जल्द तू मेवाड़ का भावी सम्राट बनेगा |"

History of Rana Sanga in Hindi

राणा सांगा का इतिहास ( Hitory of Rana Sanga )






गुरु की इस भविष्यवाणी को सुन बड़े भाई कुंवर पृथ्वीराज ने कहा- "यह सब मात्र बातें हैं मेवाड़ का राणा तो बड़ा पुत्र ही बनेगा |" इस पर कुंवर संग्राम सिंह ने कहा - "भाईसा जिस की ताकत उसकी सत्ता |" संग्राम सिंह के ऐसे वचनों को सुनकर दोनों भाइयों का आपस में झगड़ा छिड़ गया। इसी लड़ाई में पृथ्वीराज ने बालक संग्राम सिंह की एक आंख फोड़ दी | इसी बात से नाराज बालक संग्राम सिंह रात के अंधेरे में मेवाड़ के किले से अजमेर निकल गए | जहां करमचंद पवार ने उनको आश्रय दिया | अजमेर में रहकर राणा ने कई युद्ध कलाओं में महारत हासिल की| तपस्या के ताप में तप कर बालक संग्राम सिंह सोना बन रहा था | बालक संग्राम सिंह युवा हो चले थे। खून में गर्मी जिगरे में फौलाद और उचित तेवर होना लाजमी था क्योंकि वीर राणा कुंभा के ही रक्तबीज थे | यही समय था जब संग्राम सिंह ने मेवाड़ धरा की सियासत को पलट कर रख दिया। इस समय तक संग्राम सिंह के दोनों भाइयों का स्वर्गवास हो चुका था।


इसी के साथ सरदारों ने राणा संग्राम सिंह को राज्यधिकारी घोषित करते हए उनका मेवाड़ की गद्दी पर राजतिलक कर दिया। यह वही सग्राम सिह ह जिन्हें दुनिया राणा सागा के नाम से जानती है। राणा ने सतलुज, बयाना, सिध, मालवा, ग्वालियर, उत्तर गुजरात और संपूर्ण राजपूताने में एकछत्र शासन स्थापित किया | राणा के एक आंख 1 हाथ नहीं थे और शरीर पर 80 घाव थे पर फिर भी खुले शेर की तरह भयानक युद्ध का नेतृत्व खुद करते थे | राणा संपूर्ण भारत पर एकछत्र शासन स्थापित करके विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने का अरमान रखते थे।




     राणा सांगा कौन थे ? ( Who is Rana Sanga ? )


इन्होंने पाती परवन की प्रथा को पुनर्जीवित करते हुए सभी क्षत्रिय ताकतों को एक कर दिया | जिससे पश्चिम में मेवाड एक हिंद राज्य बनकर दिल्ली की सत्ताओं को ललकारने लगा | दिल्ली के सुल्तान को बंदी बनाया, गजरात के शाह को घोड़े के पीछे बांधकर मेवाड़ ले गए और बयाना के मैदानों में विशाल मुगल फौज को परास्त कर दिया | जब भारत चारों तरफ से शत्रुओं से घिर चुका था तब यह एक मात्र योद्धा बनकर सामने आए। आइये Jivan Itihas के साथ जानते हैं राणा सांगा के इतिहास के अनसुने पन्नों की पूरी दास्तान |

साल 1509 में राणा सांगा ने मेवाड़ की गद्दी संभाली | मेवाड़ में अपना गढ़ मजबूत करने के बाद राणा ने राजपूताने की सभी बड़ी-बड़ी रियासतों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने शुरू किए | जिसमें मारवाड़, बीकानेर, बूंदी, आमेर में वैवाहिक संबंधों की स्थापना के साथ राणा ने कई ताकतों को एक साथ ला दिया और साथ ही करमचंद पवार को अजमेर का मुख्य सरदार घोषित करके अपनी सत्ता को राजपुताने के मुख्य दवार तक मजबूत कर दिया | चारों दिशाओं में अपनी सत्ता मजबूत करने के बाद राणा ने इडर प्रदेश पर हमला कर दिया | जहां का शासक राजा भारमल गुजरात के सुल्तान महमूद शाह का पूरा समर्थन करता था | राणा के इस भयानक हमले से इडर नरेश गजरात भाग गया |

जिसके बाद राणा ने अपने सरदार को इडर का मुख्य प्रभारी बना दिया | इधर मेवाड़ से दूर मालवा में सुल्तान नासिर खिलजी का शासन हुआ करता था | जिसका वजीर था मेदिनी राय | मेदिनी राय खिलजी की नीतियों के पूर्ण खिलाफ था | और इन्हीं बातों से तंग आकर मेदिनी राय राणा सांगा के दरबार में जा पहुंचा | जहां राणा ने मेदिनी राय को गागरोन और चंदेरी का प्रभारी बना दिया | अब आप देखिए राणा ने बड़ी-बड़ी रियासतों से रिश्ते तय करके सभी बड़ी ताकतों को एक सूत्र में ले आए और चारों तरफ अपने विश्वसनीय सरदारों को बैठा दिया | अब राणा ने महा भयानक यदों का शंखनाद किया।


राणा की निगाहें तो शुरुआत से ही दिल्ली की सत्ता पर टिकी थी और इसी के साथ राणा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों पर अपना ध्वज लहरा दिया | और दिल्ली को आगरा पर हमले की ललकार भेजी | अब दिल्ली दूर नहीं थी | राणा की बढ़ती ताकत ने सबको हैरान कर दिया | इसी बढ़ती ताकत का जवाब देते हए साल 1517 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी ने तुरंत एक विशाल सेना के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी | इस युद्ध में इब्राहिम की सेना को चारों तरफ से घेर लिया गया | इस युद्ध में राणा का एक हाथ कट गया और एक पेड़ पर तीर लगा जिससे उन्होंने एक पैर खो दिया | इब्राहिम को कैद करके मेवाड़ दरबार ले जाया गया। जहां से। हर्जाना लेकर उसे छोड़ दिया गया | उसके 2 साल बाद फिर साल 1519 में इब्राहिम लोदी ने मियां मक्कन के नेतृत्व में राणा सांगा पर एक बार फिर हमला कर दिया | इस बार फिर राणा सांगा की विजय हुई | दिल्ली के सुल्तान को दो बार पराजित करने के बाद संपूर्ण राजपूताने में राणा सांगा के नाम की धाक कायम हो गई और सभी ने सांगा को अपना सरदार चुनते हए उन्हें हिंदू पथ की उपाधि से नवाजा |

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महाराणा सांगा की कहानी ( Maharana Sanga History in Hindi )




साल 1518 में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने गागरोन पर दावे बोलना शुरु कर दिया | जिसके बाद राणा सांगा और महमद की सेना के बीच घनघोर युद्ध हआ | इस युद्ध में सांगा ने महमूद के सभी सरदारों को मार डाला | और महमूद को बंदी बनाकर चित्तौड़ में 5 महीने तक कैद कर दिया गया | इतिहास करवट बदल रहा था | काबुल का बादशाह बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच 20 अप्रैल 1526 में पानीपत के मैदान में घनघोर युदध छिड़ गया | इस युदध के समय राणा सांगा शांति से मौके की तलाश में थे | उनको लगता था कि बाबर इब्राहिम को मारकर कुछ दिन दिल्ली में रहेगा फिर वापस लौट जाएगा | पर ऐसा नहीं था बाबर ने इब्राहिम को मारकर दिल्ली पर अपनी सत्ता कायम कर दी |

अब भारत की स्थितियां काफी बदल चुकी थी दिल्ली पर मगलो की सत्ता पर कायम हो गई थी। और इधर मेवाड़ एक बहत बड़ा हिंद साम्राज्य बन चुका था | जिसका विस्तार दिल्ली को छूता था | बाबर स्पष्ट था कि जब तक राणा सांगा जैसा योद्धा है तब तक वह भारत पर मजबूत शासन स्थापित नहीं कर पाएगा | और इसी के तहत बाबर अपनी विशाल सेना के साथ फतेहपुर सीकरी में अपना डेरा डालकर बयाना दुर्ग पर अधिकार जमा लेता है | मेवाड़ी सरदार भागता हआ पहंचा मेवाड़ दरबार में और राणा को सुचना दी कि काबुल की ओर से आई विशाल सेना ने हमारे दुर्ग पर कब्जा कर लिया और आपको युद्ध की चुनौती भेजी है। राणा को चुनौती का समाचार मिलते ही राणा ने महा युदध का ऐलान कर दिया | संपूर्ण राजपताने में पाती परवन का संदेश भिजवाया गया। जिसके तहत सभी क्षत्रिय राणा के छत्र के नीचे एक साथ मिलकर महासेना का रूप धारण कर चुकी थी और निकल पड़े बयाना की तरफ |

भयानक शंकनाद के साथ युद्ध का ऐलान किया गया | मारवाड़ नरेश मालदेव राठौर ने युद्ध की रणनीति तय की , बूंदी से उदयसिंह , अजमेर के पृथ्वीराज , बीकानेर के कल्याणमल , ग्वालियर और बड़ी-बड़ी रियासतों के महाराजा तथा अफगानी सरदारों ने राणा सांगा के नेतृत्व में 16 फरवरी 1526 को बाबर की सेना को चारों तरफ से घेर लिया और बयाना के किले पर फिर से केसरिया ध्वज लहरा दिया गया | यह बाबर की सेना की पहली हार थी | पर बाबर भी कोई छोटा-मोटा बादशाह नहीं था | इतिहास बताता है कि उसकी नेतृत्व शक्ति गजब की थी | जब मुगल सेना ने इतनी विशाल महासेना का करारा प्रहार देखा तो उन्होंने पुनः युद्ध में जाने से मना कर दिया |


जिसके बाद बाबर ने सेना को कई लालच दिए पर सेना काबुल जाने की तैयारी कर चुकी थी| अंत में बाबर ने धर्म युद्ध या जिहाद का नारा लगाया जिसके बाद सेना वापस इकट्ठा होने लगी | इतिहास बताता है कि राणा सांगा ने बयाना पर केसरिया ध्वज लहरा कर शांति कर ली जबकि उनको तुरंत दिल्ली पर धावा बोलना चाहिए था | ऐसा न करने के कारण बाबर ने फिर से सेना तैयार की और 1 महीने बाद 17 मार्च 1527 खानवा, भरतपुर के मैदानों में फिर युदध की तैयारियां शुरू कर दी | जब राणा के सरदार सुरक्षा का पहरा लगा रहे थे तब उन्होंने राणा को समाचार भिजवाया - “हुकुम तैयार रहे फिर एक बार युद्ध की तैयारी चल रही है ।" इस बार फिर पाती परवन के साथ एक महाविनाशनी सेना के साथ राणा सांगा और मगल सेना में टकराव हआ | इस बार बाबर ने कई सारे तोप अपनी सेना के पीछे तैनात कर रखी थी। तोप जैसे हथियार के बारे में भारतीयों ने पहले कभी नहीं सुना था | जब राणा की सेना आगे बढ़ी तब अली और मुस्तफा ने तोप का मुंह खोल दिया | हज़ारो हिन्द सिपाही ढेर हो गए | राणा गुस्से में लबरेज होकर युदध क्षेत्र के बीच में जा पहंचे | जहां बाबर ने सेना को तूलगामा पद्धति अपनाने का आदेश दिया | जिसके तहत राणा की सेना के पीछे से हमला करना शुरू कर दिया गया | इस हमले में राणा को एक तीर लगी जिससे वे हाथी से नीचे आ गए | तुरंत जाला अजजा ने राणा का राज चिन्ह धारण किया और हाथी पर सवार होकर यदध घोष किया। और बाकी सरदार राणा को युद्ध क्षेत्र से बाहर बसवा ले गए |

जहां राणा को वापस होश आने के बाद राणा ने कहा-" जीत की बधाई हो"| पर सरदारों ने कहा कि-"हम अपनी धरा खो चके हैं। हकम मेवाड़ प्रस्थान करने का आदेश सनाए ।" पर राणा सांगा ने सरदारों को फटकार लगाई और कहा -"मेरे आदेश के बिना कौन मुझे रण क्षेत्र से बाहर लाया | युद्ध की तैयारी करो हम विजयश्री के साथ मेवाड़ जाएंगे। तभी राणा को संदेश मिला कि बाबर की सेना चंदेरी पर हमला करेगी तो राणा में सरदारों को कहा -"तैयार हो जाओ और निकल पड़ो चंदेरी की तरफ |"जहां कालपी के मैदानों में राणा सांगा ने अपना डेरा लगाया | वही कालपी के मैदानों में राणा सांगा का स्वर्गवास हो गया | कुछ लोगों का मानना है कि राणा सांगा को सरदारों ने जहर दे दिया था | पर कुछ भी हो राणा सांगा का संपूर्ण जीवन अखंड भारत के निर्माण में बिता | वे बाबर से युद्ध से पहले लगभग 18 युदध जीतकर अपनी सत्ता दिल्ली तक ले गए थे | इतिहास के पन्ने बताते हैं कि राणा सांगा एक बदधिमान युद्ध प्रेमी , साम्राज्य विस्तार की सोच वाले एक महान योद्धा थे। अगर वह अपने सपनों में कामयाब हो जाते तो आज भारत की दशा कुछ और होती |

महाराणा सांगा की वीरता ( Heroism of Maharana Sanga )




बाबर ने खद बाबरनामा में लिखवाया कि राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल पर अत्यधिक शक्तिशाली हो गए थे | वास्तव में उनका राज्य चित्तौड़ में था | मांडू के सुल्तानों के राज्य के पतन के कारण उन्होने बहुत से स्थानों पर अधिकार जमा लिया | उनका मल्क 10 करोड़ की आमदनी का था | उनकी सेना में एक लाख सवार थे | उनके साथ 7 बड़े और 104 छोटे सरदार हमेशा तैनात रहते थे | उसके तीन उत्तराधिकारियों में से यदि एक भी वैसा ही वीर और योग्य होता तो मुगलों का राज्य हिंदुस्तान में जम ना पाता |





FAQ's Related to Rana Sanga



1. राणा सांगा की कितनी पत्नियां थी ?

Ans. एक |

2. राणा सांगा की समाधि कहा है ?

Ans.  मांडलगढ़।

3. राणा सांगा के पुत्र का क्या नाम है ?

Ans. राणा सांगा के चार पुत्र थे |

4. राणा सांगा के पिता का क्या नाम है ?

Ans. राणा रायमल |




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